मैं रहा शिथिल मैं रहा सम्मिल .
हर वेश के आवेश में , मैं रहा यूँ हीं धूमिल .
तत्पर उज्जवल रेखाओं में मेरी गिनती हुई हर चर्चाओं में ,
मैं दूर देश का वाशी , कभी कदमो में कभी कोशो में .
प्राण वायु की परम्परा में ,
हर प्रेमी मुझको पनघट पर पाया .
कभी युक्त रोष कभी नम्र होश .
हर वक्त रहा मन में मदहोश .
हर वक्त रहा मन में खामोश .
मैं रहा शिथिल मैं रहा सम्मिल .
हर वेश के आवेश में , मैं रहा यूँ हीं धूमिल .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment