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Thursday, November 11, 2010

हलख की ख्वाइश

है हलख की ख्वाइश मेरी,दो तराने गुनगुना दू!
आशिकों की महफ़िलो में दो नए रंग झिलमिला दु!
मैं मोहब्बत का शिला दू वादे अक्सर तोड़ दू!
सिददतों का पैमाना दू,और याद भी तेरी छोड़ दू!
तेर तरसते दामन में,मैं प्यार से भी मुख मोड़ दू!
...
और तुझे एहसास कर,तेरी कमी को पास कर,तन्हाई की रात भर,रखूं दूर बस स्वांश भर!
नए लफ्ज़ जोरकर,आँखों से पार मैं प्यार कर,फिर कहूँ मैं जानकार!
है हलख की ख्वाइश मेरी,दो तराने गुनगुना दू!आशिकों की महफ़िलो में दो नए रंग झिलमिला दू!

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