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Monday, August 16, 2010

!तन्हाई!

फासलों का दामन तन्हाई से इश्क कर बैठा ,
और यादो की डालियाँ मुझे झकझोरने लगी हैं.
बंद आँखों में तुम्हारा ख्वाब होता है ,
और खुलती नज़रे हकीक़त देखती हैं .
जलते सम्मा पर सौ कुर्बान होते हैं ,
और बुझते लौ पर मैं अफ्शाने लिखता हूँ !!

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